Wednesday, June 4, 2008

...राज करो तुम पैसे वालों


भई वाह


...राज करो तुम पैसे वालों ये संसार तुम्हारा है

भारत में लोकतं^ खत्म होगा और उदय होगा सामंतवाद का । इस बार मैं और मेरे जैसे कुछ लोग इसके प्रत्य&दरशी होंगे

पैसे का बोल-बाला, कंगालों तुम्हारा हमारा मुंह..(अपने बारे में क्या लिखना) भई अपनी सरकार तो कुछ ऐसा ही कह रही है । सरकार तो बस बड़े घर।नों को खुश करने में लगी हुई है, हमारी तुम्हारी सुध लेने वाला कौन । केंद सरकार ने जिस तरह से गरीबों के मुंह से निवाला छीनने की सतत प्रकिया को अंजाम देना शुरू कर दिया है उसके क्या कहने । दिनों दिन बढ़ती महंगाई ने लोगों के निवालो की संख्या को जहां कम कर दिया, वहीं रसौई गैस और तेल की कीमतों को बढ़ाकर मुंह के सारे निवाले छीनने की योजना बना डाली है। कांगेस का पुराना नारा गरीबी हटाओ ओहहह गरीब हटाओ चरिताथ$ होता नजर आ रहा है ।

वैसे भी अब कांगेस ने अपनी चाल, चरित् व चेहरा बदलने की नई व्यवस्था पर जोर देने की बात कही । असल में इसके बाद अब सावजनिक रूप से सरकार के खादिम आम आदमी मतलब मेरा और मेरे जैसों का खून पीते सरे आम नजर आएंगे । नए टैक्स का सिपर लेकर ...ही ही ही॥

अब हंसे भी न तो क्या करें । रसौई गैस के दाम बढ़ाकर जहां सरकार ने ग् हणी की रसोई का बजट बिगाड़ दिया वहीं तेल के दाम बढ़ाने के बाद महंगाई का अंदाजे बयां जल्द सुनाई देगा , तेल के दामों को मजह पांच रुपये की बढ़त बताने वाला सरकारी तंतर तो सरकारी तेल का इस्तेमाल कर रहा है । कोई मुरली देवड़ा अपने मंतरी महोदय से पुछे की अपने पैसों से कब तेल डलाया था तो साहब कुछ कहते नजर नहीं आएंगे । वो तो सरकारी दामाद है । इसलिए समझ नहीं सकते की असल में क्या फील होता होगा । या घर में जब गैस नहीं आती तो खाना बनाने में क्या दिक्कत आती है, पर मंतरी जी सब आपकी तरह नहीं नौकर-चाकर भी हैं । इतना ही नहीं नेताओं ने लोगों को नसीहत दे डाली की तेल का कम उपयोग करो इससे तेल की बचत होगी । भई मंतरी लोगों इसकी शुरुआत आप ही कर डाले तो समाज को कुछ तो आप से मिले । अपने दल में गाड़ियां एक ही रखो, सुर&ा में दस अन्य वाहन न चलवाओ । घर में एक ही गाड़ी रखो । छोड़ो याद भगत सिंह दूसरे के घर ही अच्छे लगते हैं

मंतरी जी के पीछे उनकी देख रेख को कितनी गाड़िया चलती हैं । इसका पता कहां मंतरी जी को ये तो उनके पागल चाहने वाले होते हैं लेकिन मंतरी जी तो मंतरी है हमारे मंतरी एके एंटनी जी एनडीए की परेड में धूप लगने से बहोश हो गए थे । इन्हें जूस व एसी गाड़ी में जाना होता है फिर भी मंतरी महोदय गरमी खा बैठे । उस आदमी का क्या हाल होता होगा जो अब भूखे पेट दिल्ली की ब्यू लाइन में सफर करेगा । लेकिन भूखी जनता को किसने कहां की अपने बच्चों के पेट के लिए इधर-उधर भागों । घर में पड़े रहो भगवान किसी को भूखा नहीं रखता तुम्हारा इंतजाम भी कर देगा, ये मैं नहीं कहता ये तो हमारे मंतरियों के मनोभाव है । केंद व राज्य सरकारें तो कर लो नेता मुठ्ठी में की तज$ पर राजनीति करने पर उतारू हैं ।

बचपन में सुना करते थे कि कोई लाल झंडे वाले लोग होते है जो गरीबों के लिए अड़ते हैं । पर लाल रंग के झंड़े बनने ही बंद हो गए तो उन्हें उठाने वालों का खत्म होना भी लाजमी है । फिर से ऐसे लोगों का हल्ला उठा है कि सड़कों पर हल्ला करेंगे, अरे इनसे इतने सालों में हल्ले के अलावा हुआ ही क्या है फिलहाल अब तरह तरह के झंड़ों के ऊपर कोई लाल रंग चढ़ाकर कहते नजर आते हैं कि हम लाल झंड़े वाले है । लेकिन ऐसे लोगों को तो मैंने मुंह ढके रातों को इधर-उधर जाते देखा है
खैर सानू की...
जब जनता ही कुछ कहने करने को तैयार नहीं तो मैंनू की फरक पैंदा है, पर दुखद हैं कि इस बीच कुछ लोग सीख जाएंगे दूसरे के मुंह से निवाला ...समझदार हो यार लिखने की जरुरत क्या...