Saturday, January 17, 2015

आइऩा झूठ नहीं बोलता

कहते हैं कि आइना झूठा नहीं बोलता
सच-झूठ को तराजू में नहीं तोलता
इसलिए सियासतदां ने चेहरों पर नकाब लगाए हैं
जाने कितने झूठ बोलकर अपने लिए कई ‘ताज’ बनाए हैं
पर याद रख ए दोस्त, एक दिन आइना धुंधला पड़ जाएगा
और हर ऐसा सियासतदां अपने झूठ में ही कई गढ़ जाएगा




Friday, December 12, 2008

आजकल मेरी हर बात बस सपनों सी होती है

आजकल मेरी हर बात बस सपनों सी होती है
लेकिन नींद खुद मेरे आंगन में दुश्मन बन सोती है
करता हूं मैं जो प्रयास उसे रिझाने का
वो छिटक, कहती है काम है तेरा लोगों को जगाने का

Thursday, December 11, 2008

मैंने तो फूलों की तरह खुशबू बांटी

मैंने तो फूलों की तरह खुशबू बांटी
पर मेरे हिस्से कांटे ही रहे
दिल की दौलत को खूब बांटा लोगों में

पर दिल के बाजार में घाटे ही रहे
और लोगों के कहे पर चुल्लू में भी डूब गए

पर किस्मत की हम वहां भी नाटे ही रहे
अब किसे सुनाए अपनी खैर

मुझे अपने ही लगने लगे हैं गैर
यूं तो मर गए होते हम
पर जिंदगी कहती है थोड़ा और थम

Wednesday, October 1, 2008

एक दिन खुशी मुझसे बोली,

एक दिन खुशी मुझसे बोली,

तेरा तन्हाई से क्या नाता है

तू घर मेरे क्यों नहीं आता है

मेरे घर के आंगन में भी झूम

जीवन के महकते फूलों को भी चूम

क्यों रहता है तू इतना दूर

कौन करता है तुझे इसके लिए मजबूर

मैं बोला,

खुशी तेरी चाह कौन नहीं करता़

तुझे पाने को कौन नहीं मरता

लेकिन मेरी तक्दीर का तुझसे है बैर पुराना

एक अदद हंसी हंसे मुझे तो हो गया जमाना

अब तो तन्हाई संग उठ, तन्हाई संग सो जाता हूं

और तेरे घर आने की चाहत में अक्सर रो जाता हूं

Thursday, July 3, 2008

...क्या अब पत्रकारिता बची है

आरुषि हत्याकांड

]नौकर ने की चौदह वर्षीय बच्ची की दुष्कर्म के बाद हत्या,
बाप ही निकला आरुषि का हत्यारा,
अवैध संबंध बने हत्या का कारण,
पुलिस को नहीं मिल रही सफलता
कृष्णा संदेह के घेरे मेंराजकुमार संदेह के घेरे
मेंटीशर्ट पर मिले खून के घब्बे, टीशर्ट उगलेगी हत्याकांड का सच...और न जाने क्या क्या हम बात कर रहे हैं आरु।षि हत्याकांड की . उस दौरान कुछ ऐसे शब्दों में ही मीडिया में हत्याकांड से जुड़ी खबरों का प्रसार हुआ.
ये सब पत्रकारों की जुबानी नहीं था. ये आवाजें कभी पुलिस की थी तो कभी सीबीआई की.
इस सब को कहने का तात्पर्य ये है कि यारों अपनी पत्रकार बिरादरी क्या अब पुलिस के बोल बोलने लगी है. ऐसा क्या हो गया है कि टीवी चैनल व अखबारी दुनिया के पत्रकार अपनी समझ को परे रख पुलिस के बयानों पर आधारित खबरों को चलाते व छापते रहे. पत्रकारों की अपनी सुध तो जाने कहां चली गई है। चैनलों में बैठे बड़े बड़े दिग्गज क्यों इतने दिनों तक पुलिस के बयानों के आधार पर अपनी फुटेज खराब करते रहे। अखबारी दुनिया के लोग स्याही खराब करते रहे, कोरी बकवास में। पत्रकार तो मानों हनुमान जी की तरह अपना वजूद ही नहीं पहचान पा रहे हैं।कभी याद दिलाओ तो कुछ कर गुजरते हैं बाकि तो अब कंपनियों व नेताओं के प्रवक्ता बन कर रह गए हैं। आरुषि हत्याकांड को ही लें। आखिर क्यों किसी पत्रकार ने पहले दिन ही छत पर जाकर घटनास्थल का बारीकी से जायजा नहीं लिया। काला चश्मा लगाए पत्रकारों को आखिर क्यों सीड़ी पर लगे खून के धब्बे नजर नहीं आए। आखिर क्यों ऐसा हुआ कि किसी छोटी सी हरकत को मीडिया ने बेकिंग स्टोरी बता बता कर घंटों टीआपी का खेल खेला, लेकिन अपनी समझ से आरोपियों पर व घटना पर पैनी निगाह नहीं डाली, क्यों सबूत मिटाने के लिए आरोपियों को इतना समय दिया. आईडी मेरठ जोन गुरर्दशन सिंह ने कहा कि बाप ने मारा है तो उनके साथ हो लिए. और सीबीआई ने कृष्णा व राजकुमार पर संदेह जताया तो उनके आरोपी होने का हल्ला मचा दिया. सही में ऐसा घटनाकऱ दुखद है समाज के लिए और पत्रकारिता के लिए भी. मैं इस ब्लाग के माध्यम से यह पूछना चाहूंगा कि क्या सबसे तेज खबर पहुंचाने में हम पत्रकारिता के मायने तो नहीं भूल रहे । क्या हम पत्रकारिता कर भी रहे हैं या बस एक धंधा-या बस नौकरी?

Wednesday, June 4, 2008

...राज करो तुम पैसे वालों


भई वाह


...राज करो तुम पैसे वालों ये संसार तुम्हारा है

भारत में लोकतं^ खत्म होगा और उदय होगा सामंतवाद का । इस बार मैं और मेरे जैसे कुछ लोग इसके प्रत्य&दरशी होंगे

पैसे का बोल-बाला, कंगालों तुम्हारा हमारा मुंह..(अपने बारे में क्या लिखना) भई अपनी सरकार तो कुछ ऐसा ही कह रही है । सरकार तो बस बड़े घर।नों को खुश करने में लगी हुई है, हमारी तुम्हारी सुध लेने वाला कौन । केंद सरकार ने जिस तरह से गरीबों के मुंह से निवाला छीनने की सतत प्रकिया को अंजाम देना शुरू कर दिया है उसके क्या कहने । दिनों दिन बढ़ती महंगाई ने लोगों के निवालो की संख्या को जहां कम कर दिया, वहीं रसौई गैस और तेल की कीमतों को बढ़ाकर मुंह के सारे निवाले छीनने की योजना बना डाली है। कांगेस का पुराना नारा गरीबी हटाओ ओहहह गरीब हटाओ चरिताथ$ होता नजर आ रहा है ।

वैसे भी अब कांगेस ने अपनी चाल, चरित् व चेहरा बदलने की नई व्यवस्था पर जोर देने की बात कही । असल में इसके बाद अब सावजनिक रूप से सरकार के खादिम आम आदमी मतलब मेरा और मेरे जैसों का खून पीते सरे आम नजर आएंगे । नए टैक्स का सिपर लेकर ...ही ही ही॥

अब हंसे भी न तो क्या करें । रसौई गैस के दाम बढ़ाकर जहां सरकार ने ग् हणी की रसोई का बजट बिगाड़ दिया वहीं तेल के दाम बढ़ाने के बाद महंगाई का अंदाजे बयां जल्द सुनाई देगा , तेल के दामों को मजह पांच रुपये की बढ़त बताने वाला सरकारी तंतर तो सरकारी तेल का इस्तेमाल कर रहा है । कोई मुरली देवड़ा अपने मंतरी महोदय से पुछे की अपने पैसों से कब तेल डलाया था तो साहब कुछ कहते नजर नहीं आएंगे । वो तो सरकारी दामाद है । इसलिए समझ नहीं सकते की असल में क्या फील होता होगा । या घर में जब गैस नहीं आती तो खाना बनाने में क्या दिक्कत आती है, पर मंतरी जी सब आपकी तरह नहीं नौकर-चाकर भी हैं । इतना ही नहीं नेताओं ने लोगों को नसीहत दे डाली की तेल का कम उपयोग करो इससे तेल की बचत होगी । भई मंतरी लोगों इसकी शुरुआत आप ही कर डाले तो समाज को कुछ तो आप से मिले । अपने दल में गाड़ियां एक ही रखो, सुर&ा में दस अन्य वाहन न चलवाओ । घर में एक ही गाड़ी रखो । छोड़ो याद भगत सिंह दूसरे के घर ही अच्छे लगते हैं

मंतरी जी के पीछे उनकी देख रेख को कितनी गाड़िया चलती हैं । इसका पता कहां मंतरी जी को ये तो उनके पागल चाहने वाले होते हैं लेकिन मंतरी जी तो मंतरी है हमारे मंतरी एके एंटनी जी एनडीए की परेड में धूप लगने से बहोश हो गए थे । इन्हें जूस व एसी गाड़ी में जाना होता है फिर भी मंतरी महोदय गरमी खा बैठे । उस आदमी का क्या हाल होता होगा जो अब भूखे पेट दिल्ली की ब्यू लाइन में सफर करेगा । लेकिन भूखी जनता को किसने कहां की अपने बच्चों के पेट के लिए इधर-उधर भागों । घर में पड़े रहो भगवान किसी को भूखा नहीं रखता तुम्हारा इंतजाम भी कर देगा, ये मैं नहीं कहता ये तो हमारे मंतरियों के मनोभाव है । केंद व राज्य सरकारें तो कर लो नेता मुठ्ठी में की तज$ पर राजनीति करने पर उतारू हैं ।

बचपन में सुना करते थे कि कोई लाल झंडे वाले लोग होते है जो गरीबों के लिए अड़ते हैं । पर लाल रंग के झंड़े बनने ही बंद हो गए तो उन्हें उठाने वालों का खत्म होना भी लाजमी है । फिर से ऐसे लोगों का हल्ला उठा है कि सड़कों पर हल्ला करेंगे, अरे इनसे इतने सालों में हल्ले के अलावा हुआ ही क्या है फिलहाल अब तरह तरह के झंड़ों के ऊपर कोई लाल रंग चढ़ाकर कहते नजर आते हैं कि हम लाल झंड़े वाले है । लेकिन ऐसे लोगों को तो मैंने मुंह ढके रातों को इधर-उधर जाते देखा है
खैर सानू की...
जब जनता ही कुछ कहने करने को तैयार नहीं तो मैंनू की फरक पैंदा है, पर दुखद हैं कि इस बीच कुछ लोग सीख जाएंगे दूसरे के मुंह से निवाला ...समझदार हो यार लिखने की जरुरत क्या...

Tuesday, June 3, 2008

भई आसिफ ये औषधि कौन सी थी...?

भई वाह ,
पाकिस्तान के तेज गेंदबाज मुहम्मद आसिफ को गत दिनों दुबई हवाई अड्डे पर गिरफ्तार कर लिया गया.कारण का शुरू में कुछ पता नहीं चला । कुछ देर बाद पाक किकेट बोड का आधिकारिक बयान आया तो बात सामने निकल कर आई की आसिफ अफीम रखने के आरोप में पकड़े गए . लेकिन आसिफ की इस घटना को लेकर कोई प्रतिकिया नहीं आई . मामले की गंभीरता को भांपते हुए कुछ देर बाद बयान आया कि बटुए में रखी पुड़िया अफीम नहीं वो तो कोई भारतीय पारंपरिक औषधि थी जिसे आसिफ भारत से खरीद कर ले जा रहे थे. बयान आने का दौर चलता रहा और कहा गया कि उसके चोटिल होने के कारण वह भारत से यह शक्तिवरधक औषधि ले जा रहा है। धीरे धीरे बात बात खुली तो आसिफ पानी-पानी नजर आए(एक चैनल के अनुसार). असल में आईपीएल में दिल्ली डेयरडेविल्स की ओर से खेलने के बाद आसिफ दुबई होते हुए पाकिस्तान जा रहे थे। एेसे में वो भारत की पारंपरिक औषधि बोले तो शिलाजीत (भई किसी को एेसी दवाइयों के बारे में विस्तार से जानना हो तो हमारे एक दोस्त जो एक बड़े न्यूज चैनल में बड़े पद पर पहुंच गए हैं उनसे संपक$ करने के लिए हमसे संपक$ करें )अपने साथ ले गए । अब उन्हें शायद लगातार मैच खेलने के बाद कमजोरी महसूस हुई हो या कुछ बेहद व्यक्तिगत ... बहरहाल उन्होंने इसका उपयोग करने की सोची और ले चले शिलाजीत अपने साथ पाकिस्तान । लेकिन रास्ते में ही दबोच लिए गए । अब दुबई पुलिस तो इस नशीली दवाई ही समझेगा.
बहरहाल दोस्त हमें आपसे हमदरदी है। गरम होने की चाह में अब कहीं पुलिस वाले गम$ न कर दे...दुख है