Friday, December 12, 2008

आजकल मेरी हर बात बस सपनों सी होती है

आजकल मेरी हर बात बस सपनों सी होती है
लेकिन नींद खुद मेरे आंगन में दुश्मन बन सोती है
करता हूं मैं जो प्रयास उसे रिझाने का
वो छिटक, कहती है काम है तेरा लोगों को जगाने का

Thursday, December 11, 2008

मैंने तो फूलों की तरह खुशबू बांटी

मैंने तो फूलों की तरह खुशबू बांटी
पर मेरे हिस्से कांटे ही रहे
दिल की दौलत को खूब बांटा लोगों में

पर दिल के बाजार में घाटे ही रहे
और लोगों के कहे पर चुल्लू में भी डूब गए

पर किस्मत की हम वहां भी नाटे ही रहे
अब किसे सुनाए अपनी खैर

मुझे अपने ही लगने लगे हैं गैर
यूं तो मर गए होते हम
पर जिंदगी कहती है थोड़ा और थम

Wednesday, October 1, 2008

एक दिन खुशी मुझसे बोली,

एक दिन खुशी मुझसे बोली,

तेरा तन्हाई से क्या नाता है

तू घर मेरे क्यों नहीं आता है

मेरे घर के आंगन में भी झूम

जीवन के महकते फूलों को भी चूम

क्यों रहता है तू इतना दूर

कौन करता है तुझे इसके लिए मजबूर

मैं बोला,

खुशी तेरी चाह कौन नहीं करता़

तुझे पाने को कौन नहीं मरता

लेकिन मेरी तक्दीर का तुझसे है बैर पुराना

एक अदद हंसी हंसे मुझे तो हो गया जमाना

अब तो तन्हाई संग उठ, तन्हाई संग सो जाता हूं

और तेरे घर आने की चाहत में अक्सर रो जाता हूं

Thursday, July 3, 2008

...क्या अब पत्रकारिता बची है

आरुषि हत्याकांड

]नौकर ने की चौदह वर्षीय बच्ची की दुष्कर्म के बाद हत्या,
बाप ही निकला आरुषि का हत्यारा,
अवैध संबंध बने हत्या का कारण,
पुलिस को नहीं मिल रही सफलता
कृष्णा संदेह के घेरे मेंराजकुमार संदेह के घेरे
मेंटीशर्ट पर मिले खून के घब्बे, टीशर्ट उगलेगी हत्याकांड का सच...और न जाने क्या क्या हम बात कर रहे हैं आरु।षि हत्याकांड की . उस दौरान कुछ ऐसे शब्दों में ही मीडिया में हत्याकांड से जुड़ी खबरों का प्रसार हुआ.
ये सब पत्रकारों की जुबानी नहीं था. ये आवाजें कभी पुलिस की थी तो कभी सीबीआई की.
इस सब को कहने का तात्पर्य ये है कि यारों अपनी पत्रकार बिरादरी क्या अब पुलिस के बोल बोलने लगी है. ऐसा क्या हो गया है कि टीवी चैनल व अखबारी दुनिया के पत्रकार अपनी समझ को परे रख पुलिस के बयानों पर आधारित खबरों को चलाते व छापते रहे. पत्रकारों की अपनी सुध तो जाने कहां चली गई है। चैनलों में बैठे बड़े बड़े दिग्गज क्यों इतने दिनों तक पुलिस के बयानों के आधार पर अपनी फुटेज खराब करते रहे। अखबारी दुनिया के लोग स्याही खराब करते रहे, कोरी बकवास में। पत्रकार तो मानों हनुमान जी की तरह अपना वजूद ही नहीं पहचान पा रहे हैं।कभी याद दिलाओ तो कुछ कर गुजरते हैं बाकि तो अब कंपनियों व नेताओं के प्रवक्ता बन कर रह गए हैं। आरुषि हत्याकांड को ही लें। आखिर क्यों किसी पत्रकार ने पहले दिन ही छत पर जाकर घटनास्थल का बारीकी से जायजा नहीं लिया। काला चश्मा लगाए पत्रकारों को आखिर क्यों सीड़ी पर लगे खून के धब्बे नजर नहीं आए। आखिर क्यों ऐसा हुआ कि किसी छोटी सी हरकत को मीडिया ने बेकिंग स्टोरी बता बता कर घंटों टीआपी का खेल खेला, लेकिन अपनी समझ से आरोपियों पर व घटना पर पैनी निगाह नहीं डाली, क्यों सबूत मिटाने के लिए आरोपियों को इतना समय दिया. आईडी मेरठ जोन गुरर्दशन सिंह ने कहा कि बाप ने मारा है तो उनके साथ हो लिए. और सीबीआई ने कृष्णा व राजकुमार पर संदेह जताया तो उनके आरोपी होने का हल्ला मचा दिया. सही में ऐसा घटनाकऱ दुखद है समाज के लिए और पत्रकारिता के लिए भी. मैं इस ब्लाग के माध्यम से यह पूछना चाहूंगा कि क्या सबसे तेज खबर पहुंचाने में हम पत्रकारिता के मायने तो नहीं भूल रहे । क्या हम पत्रकारिता कर भी रहे हैं या बस एक धंधा-या बस नौकरी?

Wednesday, June 4, 2008

...राज करो तुम पैसे वालों


भई वाह


...राज करो तुम पैसे वालों ये संसार तुम्हारा है

भारत में लोकतं^ खत्म होगा और उदय होगा सामंतवाद का । इस बार मैं और मेरे जैसे कुछ लोग इसके प्रत्य&दरशी होंगे

पैसे का बोल-बाला, कंगालों तुम्हारा हमारा मुंह..(अपने बारे में क्या लिखना) भई अपनी सरकार तो कुछ ऐसा ही कह रही है । सरकार तो बस बड़े घर।नों को खुश करने में लगी हुई है, हमारी तुम्हारी सुध लेने वाला कौन । केंद सरकार ने जिस तरह से गरीबों के मुंह से निवाला छीनने की सतत प्रकिया को अंजाम देना शुरू कर दिया है उसके क्या कहने । दिनों दिन बढ़ती महंगाई ने लोगों के निवालो की संख्या को जहां कम कर दिया, वहीं रसौई गैस और तेल की कीमतों को बढ़ाकर मुंह के सारे निवाले छीनने की योजना बना डाली है। कांगेस का पुराना नारा गरीबी हटाओ ओहहह गरीब हटाओ चरिताथ$ होता नजर आ रहा है ।

वैसे भी अब कांगेस ने अपनी चाल, चरित् व चेहरा बदलने की नई व्यवस्था पर जोर देने की बात कही । असल में इसके बाद अब सावजनिक रूप से सरकार के खादिम आम आदमी मतलब मेरा और मेरे जैसों का खून पीते सरे आम नजर आएंगे । नए टैक्स का सिपर लेकर ...ही ही ही॥

अब हंसे भी न तो क्या करें । रसौई गैस के दाम बढ़ाकर जहां सरकार ने ग् हणी की रसोई का बजट बिगाड़ दिया वहीं तेल के दाम बढ़ाने के बाद महंगाई का अंदाजे बयां जल्द सुनाई देगा , तेल के दामों को मजह पांच रुपये की बढ़त बताने वाला सरकारी तंतर तो सरकारी तेल का इस्तेमाल कर रहा है । कोई मुरली देवड़ा अपने मंतरी महोदय से पुछे की अपने पैसों से कब तेल डलाया था तो साहब कुछ कहते नजर नहीं आएंगे । वो तो सरकारी दामाद है । इसलिए समझ नहीं सकते की असल में क्या फील होता होगा । या घर में जब गैस नहीं आती तो खाना बनाने में क्या दिक्कत आती है, पर मंतरी जी सब आपकी तरह नहीं नौकर-चाकर भी हैं । इतना ही नहीं नेताओं ने लोगों को नसीहत दे डाली की तेल का कम उपयोग करो इससे तेल की बचत होगी । भई मंतरी लोगों इसकी शुरुआत आप ही कर डाले तो समाज को कुछ तो आप से मिले । अपने दल में गाड़ियां एक ही रखो, सुर&ा में दस अन्य वाहन न चलवाओ । घर में एक ही गाड़ी रखो । छोड़ो याद भगत सिंह दूसरे के घर ही अच्छे लगते हैं

मंतरी जी के पीछे उनकी देख रेख को कितनी गाड़िया चलती हैं । इसका पता कहां मंतरी जी को ये तो उनके पागल चाहने वाले होते हैं लेकिन मंतरी जी तो मंतरी है हमारे मंतरी एके एंटनी जी एनडीए की परेड में धूप लगने से बहोश हो गए थे । इन्हें जूस व एसी गाड़ी में जाना होता है फिर भी मंतरी महोदय गरमी खा बैठे । उस आदमी का क्या हाल होता होगा जो अब भूखे पेट दिल्ली की ब्यू लाइन में सफर करेगा । लेकिन भूखी जनता को किसने कहां की अपने बच्चों के पेट के लिए इधर-उधर भागों । घर में पड़े रहो भगवान किसी को भूखा नहीं रखता तुम्हारा इंतजाम भी कर देगा, ये मैं नहीं कहता ये तो हमारे मंतरियों के मनोभाव है । केंद व राज्य सरकारें तो कर लो नेता मुठ्ठी में की तज$ पर राजनीति करने पर उतारू हैं ।

बचपन में सुना करते थे कि कोई लाल झंडे वाले लोग होते है जो गरीबों के लिए अड़ते हैं । पर लाल रंग के झंड़े बनने ही बंद हो गए तो उन्हें उठाने वालों का खत्म होना भी लाजमी है । फिर से ऐसे लोगों का हल्ला उठा है कि सड़कों पर हल्ला करेंगे, अरे इनसे इतने सालों में हल्ले के अलावा हुआ ही क्या है फिलहाल अब तरह तरह के झंड़ों के ऊपर कोई लाल रंग चढ़ाकर कहते नजर आते हैं कि हम लाल झंड़े वाले है । लेकिन ऐसे लोगों को तो मैंने मुंह ढके रातों को इधर-उधर जाते देखा है
खैर सानू की...
जब जनता ही कुछ कहने करने को तैयार नहीं तो मैंनू की फरक पैंदा है, पर दुखद हैं कि इस बीच कुछ लोग सीख जाएंगे दूसरे के मुंह से निवाला ...समझदार हो यार लिखने की जरुरत क्या...

Tuesday, June 3, 2008

भई आसिफ ये औषधि कौन सी थी...?

भई वाह ,
पाकिस्तान के तेज गेंदबाज मुहम्मद आसिफ को गत दिनों दुबई हवाई अड्डे पर गिरफ्तार कर लिया गया.कारण का शुरू में कुछ पता नहीं चला । कुछ देर बाद पाक किकेट बोड का आधिकारिक बयान आया तो बात सामने निकल कर आई की आसिफ अफीम रखने के आरोप में पकड़े गए . लेकिन आसिफ की इस घटना को लेकर कोई प्रतिकिया नहीं आई . मामले की गंभीरता को भांपते हुए कुछ देर बाद बयान आया कि बटुए में रखी पुड़िया अफीम नहीं वो तो कोई भारतीय पारंपरिक औषधि थी जिसे आसिफ भारत से खरीद कर ले जा रहे थे. बयान आने का दौर चलता रहा और कहा गया कि उसके चोटिल होने के कारण वह भारत से यह शक्तिवरधक औषधि ले जा रहा है। धीरे धीरे बात बात खुली तो आसिफ पानी-पानी नजर आए(एक चैनल के अनुसार). असल में आईपीएल में दिल्ली डेयरडेविल्स की ओर से खेलने के बाद आसिफ दुबई होते हुए पाकिस्तान जा रहे थे। एेसे में वो भारत की पारंपरिक औषधि बोले तो शिलाजीत (भई किसी को एेसी दवाइयों के बारे में विस्तार से जानना हो तो हमारे एक दोस्त जो एक बड़े न्यूज चैनल में बड़े पद पर पहुंच गए हैं उनसे संपक$ करने के लिए हमसे संपक$ करें )अपने साथ ले गए । अब उन्हें शायद लगातार मैच खेलने के बाद कमजोरी महसूस हुई हो या कुछ बेहद व्यक्तिगत ... बहरहाल उन्होंने इसका उपयोग करने की सोची और ले चले शिलाजीत अपने साथ पाकिस्तान । लेकिन रास्ते में ही दबोच लिए गए । अब दुबई पुलिस तो इस नशीली दवाई ही समझेगा.
बहरहाल दोस्त हमें आपसे हमदरदी है। गरम होने की चाह में अब कहीं पुलिस वाले गम$ न कर दे...दुख है

Tuesday, May 27, 2008

भई हमारे साहब तो...

भई हमारे साहब तो...
मोहन बाबू राजेश को डांट रहे थे, तुझे तो अक्ल ही नहीं है अरे बेटी की शादी में बड़े साहब को ही नहीं बुलाया । साहब बुरा मान रहे थे । बोल रहे थे,राजेश ने तो हमें अपने घर बुलाने लायक भी नहीं समझा । शांत खड़ा राजेश बोला, क्या मोहन बाबू साहब लोगों पर कहां इतना समय व कहां हमारी सुध की वो हम गरीबों के यहां आते । रहने दो इन बातों को इनमें को कोई दम नहीं, मोहन बाबू राजेश की बातों को सून भड़क गए थे । अरे तू जानता ही क्या है साहब के बारे में । रहने दे तूझे समझाना ही बेकार है । सुबह दफ्तर में कुछ और लोगों ने भी साहब को शादी का निमं^ण न देने पर राजेश के टोका । मोहन बाबू तो कल की बातों से ही गुस्सा थे । इसी दौरान साबह दफ्तर में पहुंचे। आते ही बोले भई राजेश क्या मतलब अपनी बेटी की शादी में हमें नहीं बुलाया । हम क्या ज्यादा खा लेते । चलों बुलाया नहीं तो क्या अब हमारी मिठाई तो बनती है । मोहन बाबू अपने साहब की इस अदा पर मुग्ध हो चले थे। मोहन बाबू साहब के भग्तों में गिने जाते थे। समय बीता और मोहन बाबू की लड़की की शादी सिर पर आ गई। पैसे की जुगत में वह इधर-उधर भागता रहा । जुगाड़ भी हो ही गया । सभी आवत-मि*ों को निमं^ण भेजा गया । साहब को भी निमं^ण िदया गया। शादी की शाम भी गई, मोहन बाबू अपने मेहमानों के स्वागत में लगे थे। बारात से ज्यादा उसकी आंखे किसी को खोज रही थी । बारात आई और लड़की को विदा कर ले भी गई, लेकिन मोहन बाबू की आंखे अपने साहब को देखने में लगी हुई थी। एक दो लोगों से उसने पूछा भी क्या साहब को शादी में देखा था। परिचितों व दफ्तर के लोगों ने समझाया शायद कहीं काम में फंस गए होंगे वरना तुम्हारे साहब शादी में न आते। ़मोहन बाबू इस तक$ को सच मान बैठे ? एक दो दिन बाद दफ्तर पहुंचे । हाथ में साहब के लिए मिठाई का डिब्बे का साथ कई सवाल थे मोहन बाबू के दिल में । मिठाई लेकर सीधा साहब के कमरे की ओर बढ़ा । अंदर सक्सेना जी साहब से बातचीत कर रहे थे . अरे सर आप अपने भक्त मोहन की बेटी की शादी मे नहीं पहुंचे । साहब अपने अंदाज में बोले । याद कम$चारी को कम$चारी ही रहने दो । ये शादी का कारड देना, बुलाना तो सब हम लोगों ने पैसे एंठने के तरीके हैं । बाकि किस पर समय है इन लोगों की शादियों में जाकर खाए-पीए । वहां जाने से बेहतर हो कहीं जाकर दो जाम लगाए जाएं । अपने साहब के मुख से ये बातें सुन मोहन बाबू को अपने साहब का पुराना चेहरा नजर आने लगा । सोचने लगा, क्या साहब का बाहरी रुप और अंदर की सुंदरता तो वो देख ही चुका था। डिब्बा वहीं कोने में रख मोहन बाबू दफ्तर से बाहर निकल गए।

Monday, May 26, 2008

टी-20 बनाम 50-50

भई वाह,
क्या कहने इस टी-२० खेल के फॉरमेट का । लोगों की किकेट के प्रति सोच ही बदल डाली । जो लोग किकेट को समय बरबादी का खेल कहते थे आज इस खेल का लुफ्त उठाते नजर आते हैं। मसलन मेरे पिताजी जो इस खेल को काफी हिकारत भरी निगाहों से देखा करते थे। कहते थे खेल तो होता है हॉकी-फुटबाल, डेढ़ घंटे में पूरा जोर लगा देते है खिलाड़ी । किकेट भी कोई खेल है पूरा दिन खेलने वाले भी पागल और देखने वालों को क्या कहें (हम-तुम भी थे यार)। पर अब उनका नज़रिया बदल गया है । तेजी से बदलते किकेट के इस फारमेट ने उनके सोचने के तरीके को भी बदल डाला है। हर बॉल पर चौका या छक्के का प्रयास उन्हें भी भाने लगा है। पहले जहां टोंट मारते हुए पुछा करते थे कि क्या हुआ हार गई तुम्हारी कपल देव की टीम(पंजाबी टच में)अब पूछते हैं कि धोनी ने कितने रन बनाए। खैर आने वाले दिनों में किकेट दोबारा से परिभाषित होता नजर आएगा । ५०-५० ओवर के खेल की तो खैर ही समझिए। दश$कों की भीड़ जुटाना मश्किल हो सकता है। दश$कों को आदत पड़ गई है खेल में रोमांच के बने रहने की। उधर से शाहरुख-प्रीति-केटरिना आदि-आदि को देखने की भी। टी-२० के इस गेम ने लोगों की हालत ये कर दी है कि जहां किसी बल्लेबाज ने दो गेंद रोकी, वहीं उसे गालियां देने वाले शुरू हो गए है। दश$कों को चाहिए तो बस चौके छक्के । खाली गेद छोड़ना मतलब समझ लो...अब एेसे में ५०-५० के दश$कों व खेल का क्या होगा,खिलाड़ी भी जाने किस तरह अपने अरमानों को रोक पाएंगे । हर बॉल पर चौका छक्का मारना किस बल्लेबाज को नहीं भाएगा,लोगों की बदली सोच के बाद अब बॉल को लेफ्ट करने का मतलब अपने दश$कों के मुख से ...श्लोक सुनना समझिए। बहरहाल खेल में दुरगति हो रही है तो गेंदबाजों की । अभी तक के अधिकतर मैचों में बल्लेबाजों को ही मैन अॉफ मैच का इनाम मिला है। अब ५०-५० के फारमेट में जल्द बदलाव नहीं हुए तो दश$कों को घर घर जाकर जुटाना पड़ेगा। आने वाले िदनों में ५०-५० खेल के फारमेट की चिंता बीसीसीआई करे हमे तो मजा आ रहा है उसे आने दो। मरे अलावा वो लोग जो मैच देखने के िलए या तो अपने आफिसों में गोली देते नजर आते थे या छुट्टी कर घर बैठ जाते थे अब वो पूरे दिन के बजाय कुछ समय के लिए आफिस से गायब हो सकते हैं। या जल्दी निकलने का बहाना आसानी से बना सकते हैं। अब थोड़ा गंभीर हो जाते हैं
टी-२० के बाद दूसरे खेलों को बड़ा फायदा होने जा रहा है। लोगों का किकेट के प्रति मोह भंग जल्द होने वाला है। एेसी सूरत में लोग दोबारा हॉकी फुटबाल टीटी आदि इत्यादि खेलों की तरफ जाए एेसा होता जल्द नजर आएगा।लेकिन टी-२० फारमेट त्वाड़ा जवाब नहींभई वाह