भई हमारे साहब तो...
मोहन बाबू राजेश को डांट रहे थे, तुझे तो अक्ल ही नहीं है अरे बेटी की शादी में बड़े साहब को ही नहीं बुलाया । साहब बुरा मान रहे थे । बोल रहे थे,राजेश ने तो हमें अपने घर बुलाने लायक भी नहीं समझा । शांत खड़ा राजेश बोला, क्या मोहन बाबू साहब लोगों पर कहां इतना समय व कहां हमारी सुध की वो हम गरीबों के यहां आते । रहने दो इन बातों को इनमें को कोई दम नहीं, मोहन बाबू राजेश की बातों को सून भड़क गए थे । अरे तू जानता ही क्या है साहब के बारे में । रहने दे तूझे समझाना ही बेकार है । सुबह दफ्तर में कुछ और लोगों ने भी साहब को शादी का निमं^ण न देने पर राजेश के टोका । मोहन बाबू तो कल की बातों से ही गुस्सा थे । इसी दौरान साबह दफ्तर में पहुंचे। आते ही बोले भई राजेश क्या मतलब अपनी बेटी की शादी में हमें नहीं बुलाया । हम क्या ज्यादा खा लेते । चलों बुलाया नहीं तो क्या अब हमारी मिठाई तो बनती है । मोहन बाबू अपने साहब की इस अदा पर मुग्ध हो चले थे। मोहन बाबू साहब के भग्तों में गिने जाते थे। समय बीता और मोहन बाबू की लड़की की शादी सिर पर आ गई। पैसे की जुगत में वह इधर-उधर भागता रहा । जुगाड़ भी हो ही गया । सभी आवत-मि*ों को निमं^ण भेजा गया । साहब को भी निमं^ण िदया गया। शादी की शाम भी गई, मोहन बाबू अपने मेहमानों के स्वागत में लगे थे। बारात से ज्यादा उसकी आंखे किसी को खोज रही थी । बारात आई और लड़की को विदा कर ले भी गई, लेकिन मोहन बाबू की आंखे अपने साहब को देखने में लगी हुई थी। एक दो लोगों से उसने पूछा भी क्या साहब को शादी में देखा था। परिचितों व दफ्तर के लोगों ने समझाया शायद कहीं काम में फंस गए होंगे वरना तुम्हारे साहब शादी में न आते। ़मोहन बाबू इस तक$ को सच मान बैठे ? एक दो दिन बाद दफ्तर पहुंचे । हाथ में साहब के लिए मिठाई का डिब्बे का साथ कई सवाल थे मोहन बाबू के दिल में । मिठाई लेकर सीधा साहब के कमरे की ओर बढ़ा । अंदर सक्सेना जी साहब से बातचीत कर रहे थे . अरे सर आप अपने भक्त मोहन की बेटी की शादी मे नहीं पहुंचे । साहब अपने अंदाज में बोले । याद कम$चारी को कम$चारी ही रहने दो । ये शादी का कारड देना, बुलाना तो सब हम लोगों ने पैसे एंठने के तरीके हैं । बाकि किस पर समय है इन लोगों की शादियों में जाकर खाए-पीए । वहां जाने से बेहतर हो कहीं जाकर दो जाम लगाए जाएं । अपने साहब के मुख से ये बातें सुन मोहन बाबू को अपने साहब का पुराना चेहरा नजर आने लगा । सोचने लगा, क्या साहब का बाहरी रुप और अंदर की सुंदरता तो वो देख ही चुका था। डिब्बा वहीं कोने में रख मोहन बाबू दफ्तर से बाहर निकल गए।
Tuesday, May 27, 2008
Monday, May 26, 2008
टी-20 बनाम 50-50
भई वाह,
क्या कहने इस टी-२० खेल के फॉरमेट का । लोगों की किकेट के प्रति सोच ही बदल डाली । जो लोग किकेट को समय बरबादी का खेल कहते थे आज इस खेल का लुफ्त उठाते नजर आते हैं। मसलन मेरे पिताजी जो इस खेल को काफी हिकारत भरी निगाहों से देखा करते थे। कहते थे खेल तो होता है हॉकी-फुटबाल, डेढ़ घंटे में पूरा जोर लगा देते है खिलाड़ी । किकेट भी कोई खेल है पूरा दिन खेलने वाले भी पागल और देखने वालों को क्या कहें (हम-तुम भी थे यार)। पर अब उनका नज़रिया बदल गया है । तेजी से बदलते किकेट के इस फारमेट ने उनके सोचने के तरीके को भी बदल डाला है। हर बॉल पर चौका या छक्के का प्रयास उन्हें भी भाने लगा है। पहले जहां टोंट मारते हुए पुछा करते थे कि क्या हुआ हार गई तुम्हारी कपल देव की टीम(पंजाबी टच में)अब पूछते हैं कि धोनी ने कितने रन बनाए। खैर आने वाले दिनों में किकेट दोबारा से परिभाषित होता नजर आएगा । ५०-५० ओवर के खेल की तो खैर ही समझिए। दश$कों की भीड़ जुटाना मश्किल हो सकता है। दश$कों को आदत पड़ गई है खेल में रोमांच के बने रहने की। उधर से शाहरुख-प्रीति-केटरिना आदि-आदि को देखने की भी। टी-२० के इस गेम ने लोगों की हालत ये कर दी है कि जहां किसी बल्लेबाज ने दो गेंद रोकी, वहीं उसे गालियां देने वाले शुरू हो गए है। दश$कों को चाहिए तो बस चौके छक्के । खाली गेद छोड़ना मतलब समझ लो...अब एेसे में ५०-५० के दश$कों व खेल का क्या होगा,खिलाड़ी भी जाने किस तरह अपने अरमानों को रोक पाएंगे । हर बॉल पर चौका छक्का मारना किस बल्लेबाज को नहीं भाएगा,लोगों की बदली सोच के बाद अब बॉल को लेफ्ट करने का मतलब अपने दश$कों के मुख से ...श्लोक सुनना समझिए। बहरहाल खेल में दुरगति हो रही है तो गेंदबाजों की । अभी तक के अधिकतर मैचों में बल्लेबाजों को ही मैन अॉफ मैच का इनाम मिला है। अब ५०-५० के फारमेट में जल्द बदलाव नहीं हुए तो दश$कों को घर घर जाकर जुटाना पड़ेगा। आने वाले िदनों में ५०-५० खेल के फारमेट की चिंता बीसीसीआई करे हमे तो मजा आ रहा है उसे आने दो। मरे अलावा वो लोग जो मैच देखने के िलए या तो अपने आफिसों में गोली देते नजर आते थे या छुट्टी कर घर बैठ जाते थे अब वो पूरे दिन के बजाय कुछ समय के लिए आफिस से गायब हो सकते हैं। या जल्दी निकलने का बहाना आसानी से बना सकते हैं। अब थोड़ा गंभीर हो जाते हैं
टी-२० के बाद दूसरे खेलों को बड़ा फायदा होने जा रहा है। लोगों का किकेट के प्रति मोह भंग जल्द होने वाला है। एेसी सूरत में लोग दोबारा हॉकी फुटबाल टीटी आदि इत्यादि खेलों की तरफ जाए एेसा होता जल्द नजर आएगा।लेकिन टी-२० फारमेट त्वाड़ा जवाब नहींभई वाह
क्या कहने इस टी-२० खेल के फॉरमेट का । लोगों की किकेट के प्रति सोच ही बदल डाली । जो लोग किकेट को समय बरबादी का खेल कहते थे आज इस खेल का लुफ्त उठाते नजर आते हैं। मसलन मेरे पिताजी जो इस खेल को काफी हिकारत भरी निगाहों से देखा करते थे। कहते थे खेल तो होता है हॉकी-फुटबाल, डेढ़ घंटे में पूरा जोर लगा देते है खिलाड़ी । किकेट भी कोई खेल है पूरा दिन खेलने वाले भी पागल और देखने वालों को क्या कहें (हम-तुम भी थे यार)। पर अब उनका नज़रिया बदल गया है । तेजी से बदलते किकेट के इस फारमेट ने उनके सोचने के तरीके को भी बदल डाला है। हर बॉल पर चौका या छक्के का प्रयास उन्हें भी भाने लगा है। पहले जहां टोंट मारते हुए पुछा करते थे कि क्या हुआ हार गई तुम्हारी कपल देव की टीम(पंजाबी टच में)अब पूछते हैं कि धोनी ने कितने रन बनाए। खैर आने वाले दिनों में किकेट दोबारा से परिभाषित होता नजर आएगा । ५०-५० ओवर के खेल की तो खैर ही समझिए। दश$कों की भीड़ जुटाना मश्किल हो सकता है। दश$कों को आदत पड़ गई है खेल में रोमांच के बने रहने की। उधर से शाहरुख-प्रीति-केटरिना आदि-आदि को देखने की भी। टी-२० के इस गेम ने लोगों की हालत ये कर दी है कि जहां किसी बल्लेबाज ने दो गेंद रोकी, वहीं उसे गालियां देने वाले शुरू हो गए है। दश$कों को चाहिए तो बस चौके छक्के । खाली गेद छोड़ना मतलब समझ लो...अब एेसे में ५०-५० के दश$कों व खेल का क्या होगा,खिलाड़ी भी जाने किस तरह अपने अरमानों को रोक पाएंगे । हर बॉल पर चौका छक्का मारना किस बल्लेबाज को नहीं भाएगा,लोगों की बदली सोच के बाद अब बॉल को लेफ्ट करने का मतलब अपने दश$कों के मुख से ...श्लोक सुनना समझिए। बहरहाल खेल में दुरगति हो रही है तो गेंदबाजों की । अभी तक के अधिकतर मैचों में बल्लेबाजों को ही मैन अॉफ मैच का इनाम मिला है। अब ५०-५० के फारमेट में जल्द बदलाव नहीं हुए तो दश$कों को घर घर जाकर जुटाना पड़ेगा। आने वाले िदनों में ५०-५० खेल के फारमेट की चिंता बीसीसीआई करे हमे तो मजा आ रहा है उसे आने दो। मरे अलावा वो लोग जो मैच देखने के िलए या तो अपने आफिसों में गोली देते नजर आते थे या छुट्टी कर घर बैठ जाते थे अब वो पूरे दिन के बजाय कुछ समय के लिए आफिस से गायब हो सकते हैं। या जल्दी निकलने का बहाना आसानी से बना सकते हैं। अब थोड़ा गंभीर हो जाते हैं
टी-२० के बाद दूसरे खेलों को बड़ा फायदा होने जा रहा है। लोगों का किकेट के प्रति मोह भंग जल्द होने वाला है। एेसी सूरत में लोग दोबारा हॉकी फुटबाल टीटी आदि इत्यादि खेलों की तरफ जाए एेसा होता जल्द नजर आएगा।लेकिन टी-२० फारमेट त्वाड़ा जवाब नहींभई वाह
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