एक दिन खुशी मुझसे बोली,
तेरा तन्हाई से क्या नाता है
तू घर मेरे क्यों नहीं आता है
मेरे घर के आंगन में भी झूम
जीवन के महकते फूलों को भी चूम
क्यों रहता है तू इतना दूर
कौन करता है तुझे इसके लिए मजबूर
मैं बोला,
खुशी तेरी चाह कौन नहीं करता़
तुझे पाने को कौन नहीं मरता
लेकिन मेरी तक्दीर का तुझसे है बैर पुराना
एक अदद हंसी हंसे मुझे तो हो गया जमाना
अब तो तन्हाई संग उठ, तन्हाई संग सो जाता हूं
और तेरे घर आने की चाहत में अक्सर रो जाता हूं